शिमला-05 नवंबर. कानून द्वारा स्थापित प्रकिया के विपरीत टेलीफोन टैपिंग कर साक्ष्य जुटाना अवैध है। इस प्रकार अवैध रूप से जुटाए गए साक्ष्य कानूनन अमान्य।है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि इस तरह से कानून का उल्लंघन कर जुटाए साक्ष्य मान्य नहीं होते। हाईकोर्ट के न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी ने यह व्यवस्था देते हुए कहा कि निजता के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा माना गया है। कोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में पत्नी और उसकी मां की आपसी बातचीत की टेलीफोन रिकॉर्डिंट को साक्ष्य के रूप में मान्यता देते हुए रिकॉर्ड पर लेने की गुहार वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। किसी के घर अथवा कार्यालय की गोपनीयता को देखते हुए टेलीफोन पर बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से “गोपनीयता के अधिकार” के दायरे में आता है। इसलिए स्थापित प्रक्रिया का पालन कर ही वैध रूप से साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं।
मामले के अनुसार प्रार्थी पति ने पारिवारिक न्यायालय में प्रतिवादी-पत्नी की उसकी मां के साथ रिकॉर्ड की गई बातचीत को रिकॉर्ड में रखने की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट ने प्रार्थी के आवेदन को खारिज कर रिकॉर्डिंग को रिकॉर्ड पर लाने की मांग खारिज कर दी थी। इन आदेशों को प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून के तहत इस तरह के साक्ष्य को अवैध माना जाता है, क्योंकि यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।