शिमला-14 दिसंबर. पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष ने शिमला से जारी बयान में कहा कि मुख्यमंत्री किस दर्जे का झूठ बोलते हैं यह आज प्रदेश के लोगों ने फिर देख लिया। रात में जिसे जंगली मुर्गा बोलकर मुख्यमंत्री अपने सहयोगी और मंत्रियों को चटकारे ले लेकर खिला रहे थे सुबह वही जंगली मुर्गा देसी मुर्गा बन गया। एक मुख्यमंत्री l जो प्रदेश की संवैधानिक पर पर बैठता है और प्रदेश का संरक्षक होता है उसके द्वारा इस तरह का बर्ताव करना और भी शर्मनाक है। कुपवी में शुक्रवार की रात में जो हुआ उसे लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा, खाना देने के दौरान मुख्यमंत्री को बताया जा रहा है कि जंगली मुर्गा है तो वह कहते हैं कि जंगली मुर्गा कहीं बनाया जाता है? उसके बाद वह पूछ–पूछ कर अपने मंत्रियों और सहयोगियों को सर्व करने के लिए कहते हैं। अगले दिन जब यह मुद्दा बनता है और लोगों को पता चलता है की सरकारी संरक्षण में संरक्षित जंगली मुर्गा सीएम के कार्यक्रम में परोसा गया है तो मुख्यमंत्री गैर जिम्मेदाराना बातें करते हैं और सही जवाब देने की बजाय झूठ बोलते हैं। उन्हें समझना चाहिए की प्रदेश के लोग बहुत समझदार हैं और उन्हें इस तरह के झूठ बोलकर बार-बार बरगलाया नहीं जा सकता है।
जयराम ठाकुर ने कहा कि कुपवी में जो कुछ हुआ वह सरकार के संरक्षण में हुआ। भोजन के पहले ही मीडिया कर्मियों को मुख्यमंत्री और उनके लोगों को परोसे जाने वाले भोजन के बारे में पूरी जानकारी दी गई थी। सीएम के एक दिन पहले ही चौपाल ले जाएंगे मीडिया कर्मियों को वह मेनू व्हाट्सएप के द्वारा और प्रिंट कागज के माध्यम से दिया गया था। लोगों की माने तो पत्रकारों द्वारा भी जंगली मुर्गा को मेनू में शामिल करने पर सवाल उठाए गए थे लेकिन सत्ता का नशा जब दिमाग पर चढ़ता है तो लोगों को बातें समझ नहीं आती हैं। इसके बाद भी जंगली मुर्गा परोसा गया। मामला बिगड़ता देख मामले की जांच पड़ताल करने की बजाय मुख्यमंत्री ने जंगली मुर्गे को देसी मुर्गा बात कर सारा आरोप विपक्ष पर मढ़ दिया। जब विपक्ष का मुखिया है न्याय नहीं चाहता है तो प्रदेश के आम लोग हो या जीव जंतु उन्हें न्याय कैसे मिलेगा? विपक्ष पर अपनी हर नाकामी का दोष लगाने के बजाय उन्हें आत्म मंथन करना चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में जंगली मुर्गे की सभी प्रजातियां वाइल्ड लाइफ प्रोटक्शन एक्ट 1972 और वाइल्ड लाइफ प्रोटक्शन अमेंडमेंट एक्ट 2022 के तहत ’शेड्यूल्ड वन’ में रखी गई है। ’शेड्यूल वन’ में वही प्रजातियां रखी जाती हैं जो हाईली एंडेंजर्ड होती हैं और जिनका शिकार अथवा अन्य किसी प्रकार से वध अपराधिक कृत्य माना जाता है और उसमें सजा का प्रावधानहै। लेकिन जब सब कुछ प्रदेश के मुखिया के संरक्षण में ही हो रहा हो तो न्याय की बात करना बेमानी है। चाहिए तो यह था की मुख्यमंत्री को इस मामले में भी समोसा जैसी तत्परता दिखाते और मामला प्रकाश में आने के बाद उसकी जांच करवाते, जिससे कानून उल्लंघन करने वाले को सजा मिलती और प्रदेश के लोगों में एक सकारात्मतक संदेश जाता। जिससे वन्य जीवों के संरक्षण को बल मिलता। लेकिन बिना जांच के मुख्यमंत्री ने हर बार की तरह पूरे प्रकरण को एक राजनीतिक रंग दिया और सारा दोष विपक्ष पर मढ़कर आगे बढ़ गए।