शिमला-04सितंबर.हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ठेकेदार को बिलों का भुगतान न करने को चिंताजनक बताया है. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए लोक निर्माण विभाग को तीन सप्ताह के भीतर ठेकेदार की बकाया राशि अदा करने के आदेश दिए.
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा ने चेतावनी दी है कि यदि ठेकेदार के 31 लाख रुपए के बिल का भुगतान नहीं किया गया तो अगली सुनवाई के दौरान विभाग के मुख्य अभियंता को अदालत में उपस्थित रहना होगा. मामले में हाईकोर्ट ने विभाग के शपथ पत्र का अवलोकन करने पर कहा कि ठेकेदार को बिलों का भुगतान करने के लिए मुख्य अभियंता, मंडी क्षेत्र ने अपने कार्यालय से 31.10 लाख रुपये की राशि की मांग की है.
हलफनामे के अनुसार, ठेकेदार के बकाया बिल की जांच करने और हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव (वित्त) को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 7 जुलाई को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है. हाई कोर्ट पहले ही इस बात की कड़ी आलोचना कर चुका है कि याचिकाकर्ता को उसके द्वारा किए गए कार्य का भुगतान किए बिना ही पूरे हो चुके काम को किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दिया गया. इस तथ्य को देखते हुए उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन समझ से परे है. कोर्ट ने कहा कि संबंधित अधिकारी के खिलाफ दिए जांच के आदेशों पर अमल को लंबित रखने के लिए उच्चाधिकार समिति का गठन किया गया है. यह कार्रवाई घोड़े के भाग जाने के बाद अस्तबल का दरवाजा बंद करने के समान है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता अरुण आजाद के पक्ष में 31.10 लाख रुपये की राशि अगली सुनवाई की तारीख पर डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से प्रस्तुत करने के आदेश दिए.
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता द्वारा पहले से ही निष्पादित कुछ कार्यों को फिर से एक अन्य ठेकेदार को सौंप दिया गया था. यही नहीं, विभाग ने भी यह तथ्य स्वीकार कर लिया था. इस पर कोर्ट ने इसे गलती मानने और दोषी को निर्दोष ठहराने से इनकार कर दिया था. कोर्ट को बताया गया था कि विभाग ने तत्कालीन कार्यकारी अभियंता जे.पी. नायर के खिलाफ जांच शुरू करने का आदेश पहले ही दिया था. वहीं हाईकोर्ट ने जांच संबंधी आदेश जारी करने की बजाय याचिकाकर्ता द्वारा पूर्ण किए गए कार्य के बिलों का भुगतान करने के आदेश दिए थे. साथ ही जांच को अंजाम तक पहुंचाने को कहा था. इसके बाद मामले को अनुपालना के लिए रखा गया था.