नई दिल्ली-16 अप्रैल. विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी BJP में राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर बड़ा पेंच फंसा हुआ है. गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि ये परिवार की पार्टी नहीं बल्कि 14 करोड़ सदस्यों की पार्टी है, इसलिए अध्यक्ष चुनने में समय तो लगता ही है. जब भी फैसला होगा और नामांकन दाखिल किया जाएगा लोगों को पता चल जाएगा. ये बात और है कि अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल पूरा हुए साल भर होने को आया लेकिन अब तक न तो BJP आलाकमान ने पत्ते खोले हैं औऱ न हीं संघ ने. इसलिए जो भी समझ में आ रहा है उसके मुताबिक BJP और संघ के बीच अध्यक्ष पद को लेकर बड़ा पेंच फंसा हुआ है जिसके चलते बीते एक साल से पार्टी अध्यक्ष को लेकर कोई नाम तय नहीं हो पा रहा है. BJP संगठन को मजबूत करने और उसे संभाल सकने वाले नेता को अध्यक्ष बनाना चाह रही है. संघ और बीजेपी आलाकमान दोनों चाहते है कि अध्यक्ष के चयन में राजनीतिक संदेश देने के बजाए संगठन को मजबूत करने वाले नेता को प्राथमिकता दी जाए. सूत्रों के मुताबिक इतना तो साफ नजर रहा है कि नए अध्यक्ष के चयन को लेकर अभी आम राय नहीं बन पा रही है. सूत्रों की माने तो सूत्रों के अनुसार बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में अभी और देरी हो सकती है. संभावना है कि यह चुनाव और अगले महीने तक के लिए टल जाए.बीजेपी आलाकमान के पास अभी तीन बड़े फेरबदल करने का लक्ष्य पूरा करना है. पहला है राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव और संगठन में व्यापक फेरबदल ताकि भविष्य के लिए नेतृत्व का निर्माण शुरु हो जाए. दूसरा लक्ष्य है देश भर मे राज्यपालों की नियुक्तियां. कई राज्यपालों क कार्यकाल पूरा हो चुका है और कुछ पुराने नेताओं को मौका देना है. तीसरा है केन्द्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार जो बिहार चुनाव से पहले कभी भी हो सकता है. मोदी मंत्रिपरिषद में अभी 9 जगह खाली हैं. सहयोगी दलों को भी जगह मिल सकती है. फेरबदल इसलिए संभव है कि बिहार में विधानसभा चुनाव हैं और कुछ पार्टियों को एनडीए के दायरे में लाना है. NDA में हाल में शामिल हुए AIADMK को भी जगह मिल सकती है. मंथन का दौर जारी है. देखते हैं कि किसकी पलकें पहले झपकती हैं. इंतजार कीजिए कि बीजेपी के लिए इंतजार की घडियां कब समाप्त होतीं हैं.
ये बात और है कि सभी राज्यों में सदस्यता अभियान पूरे करने और कम से कम 18 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में अध्यक्ष के चुनावों के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनावों की प्रक्रिया भी शुरु होगी. लेकिन अभी 18 प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव पूरे नहीं हुए हैं. सूत्रों की माने तो दो राज्यों गुजरात और उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव न होने के कारण बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अटका हुआ है. कभी मनोहर लाल खट्टर का नाम सामने आता है तो कभी शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान या फिर भूपेन्द्र यादव भी रेस मे नजर आने लगते हैं. कभी खबर आती है कि दक्षिण भारत से किसी नेता पर दांव लगाया जा सकता है तो फिर कहीं से आवाज आती है कि महिला नेतृत्व हो तो ही बेहतर. लेकिन कोई नहीं जानता है कि संघ औऱ बीजेपी आलाकमान संगठन से जुड़े किस चेहरे को शीर्ष पर बिठाना चाहता है जो 2029 के लोकसभा चुनावों तक संगठन को मजबूत बनाने के लिए पूरी ताकत लगा देने में सक्षम हो.
संगठन से जुड़े नेता को प्राथमिकता मिलने वाली है ये इस बात से ही जाहिर हो जाती है कि बीजेपी ने पूरे साल चले संगठनात्मक चुनावों में जमीनी कार्यकर्ताओं को महत्व दिया है. संगठन के रणनीतिकारों ने भविष्य़ के नेतृत्व के निर्माण को लेकर जिला अध्यक्षों के चुनाव में साठ वर्ष की उम्र सीमा रखी गई, हालांकि कुछ अपवाद भी रहे हैं लेकिन कहीं बवाल नहीं हुआ. कुछ इसी तर्ज पर संगठन में कम से कम दस वर्ष से सक्रिय कार्यकर्ताओं को ही चुना गया हालांकि केरल में राजीव चंद्रशेखर इसका अपवाद हैं. BJP के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद बीजेपी बड़े संगठनात्मक बदलाव संभव हैं.इतना तो तय है कि केंद्र सरकार और पार्टी संगठन में बड़े बदलाव होंगे. शीर्ष सूत्रों से मिले संकेत के मुताबिक पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था संसदीय बोर्ड में कद्दावर नेताओं को जगह दी जा सकती है. पिछले बार जब संसदीय बोर्ड का गठन हुआ था तो कई ऐसे नेता था जिनका प्रोफाईल शीर्ष संस्था के स्तर का नहीं था. लेकिन आलाकमान की मंशा यही थी कि सभी क्षेत्रों और जातियों को प्रतिनिधित्व मिले. लेकिन साफ था कि लोप्रोफाइल नेताओं को जगह देकर पार्लियामेंट्री बोर्ड का महत्व घटाया गया था. सूत्रों की माने तो नया अध्यक्ष बनने के बाद 50 प्रतिशत राष्ट्रीय महासचिवों की छुट्टी हो सकती है. युवा नेताओं को बतौर महासचिव नए अध्यक्ष की टीम में जगह दी जाएगी. केंद्र सरकार से भी कुछ नेताओं को संगठन में लाया जा सकता है