शिमला-03सितंबर. हिमाचल सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर जो चिंता कैग रिपोर्ट में व्यक्त की गई है उससे भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। बढ़ता कर्ज भार और उसके मुकाबले में घटता राजस्व एक ऐसी स्थिति के प्रति गहरा संकट और संदेश है जिस पर यदि समय रहते अंकुश न लगाया गया तो स्थितियां बहुत भयानक हो जायेंगी। क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक जो कर्ज उठाया जा रहा है उसका 64% से 70% तक सरकार वेतन, पैन्शन और ब्याज की अदायगी पर खर्च कर रही है और विकासात्मक कार्यों के लिये जिन से राजस्व पैदा होगा सिर्फ 30% ही बचता है। जबकि सरकार जो भी कर्ज लेती है वह विकास कार्यों में निवेश के नाम पर लेती है। क्योंकि प्रतिबद्ध खर्चाे के लिए कर्ज उठाने का नियमों में कोई प्रावधान ही नहीं है। प्रतिबद्ध खर्च सरकार को अपने ही संसाधनों से पूरे करने होते हैं और यह संसाधन है ही नहीं। इसके लिये गलत बयानी करके विकास के नाम पर कर्ज उठाया जाता है और इसी से सरकार के वित्तीय प्रबंधन का कौशल सामने आता है। सुक्खू सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कुल कर्जभार 70000 करोड़ के करीब था जो अब बढ़कर एक करोड़ पहुंच गया है। हर माह सरकार को करीब एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार की कर्ज लेने की सीमा 7000 करोड़ और अभी तक सरकार 6500 करोड़ के करीब कर्ज ले चुकी है। अगले आने वाले समय में कैसे जुगाड़ किया जायेगा यहां एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इतना कर्ज उठाकर भी यह सरकार पिछली देनदारियां पूरी नहीं कर पायी है। यह सवाल उठने लग पड़ा है कि आखिर कर्ज का निवेश हो कहां रहा है। सरकार लगातार यह आरोप लगाती आ रही है कि उसे केन्द्र की ओर से पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। जबकि सदन के पटल पर सवालों के जवाब में आये आंकड़ों के अनुसार यह आरोप आधारहीन हो जाता है। क्योंकि आपदा प्रबंधन में ही 31-7-2025 तक तीन वर्षों में 3578 करोड़ 63 लाख सरकार को मिले हैं। एडीबी से चार परियोजनाओं के लिए दो वर्षों में 31-7-2025 तक 625 करोड़ 87 लाख मिले हैं। जल शक्ति विभाग में 1-1-23 से 31-7-2025 तक 1598 करोड़ 76 लाख 22900 रुपए मिले हैं। स्वास्थ्य विभाग में चल रही विभिन्न योजनाओं के लिए 1877.24 करोड़ मिले हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में केन्द्र से इतनी धनराशि मिलने के बाद भी आयुष्मान भारत और हिम केयर में 657 करोड़ की देनदारियां पड़ी हुई हैं। कर्मचारियों के मैडिकल बिलों का भुगतान नहीं हो रहा है। लेकिन वित्तीय प्रबंधन कमजोर होने के कारण केन्द्र से मिला 1024 करोड़ यह सरकार खर्च नहीं कर पायी और यह पैसा केन्द्र को वापस कर दिया गया। इसी तरह 14 मामलों के लिये 711 करोड़ का अनुपूरक बजट में प्रावधान किया गया और अन्त में यह सामने आया कि इन मामलों के लिये मूल बजट में जो प्रावधान किया गया था वह ही खर्च नहीं हो पाया। इसी तरह 40 परियोजनाओं के लिये जारी किये गये बजट में से एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया।
संसाधनों के नाम पर सरकार ने दस उपकर लगा रखे हैं पंचायती राज संस्था मार्च 99 से, मोटर वाहन पर सैस 1-4-2017 से, गऊ धन विकास निधि 1-8-2018 से, एम्बुलैन्स सेवा फण्ड 1-8-2018 से, कोविड सैस 1-6-2020 से 2023 तक, मिल्क सैस 1-4-2023 से, प्राकृतिक खेती सैस 1-4-2024 से, दुग्ध उपकर 26-9-2024से, मिल्कऔर पर्यावरण सैस 10-09-2009 से, लेबर सैस 4-12-2009 और 2023 से। इन उपकरों से अब तक सरकार 762 करोड़ 13 लाख 60421.90 पैसे कमा चुकी है। यही नहीं सुक्खू सरकार ने ही जो कर और शुल्क लगाये हैं उनसे अब तक 5200 करोड़ अर्जित कर चुकी है। यदि सरकार द्वारा रखे गये तीन वर्षों के बजटों का आकलन किया जाये तो इनमें कुल आय और खर्चे में जो घाटा दिखाया गया है उसके आंकड़े उठाये गये कर्ज से मेल नहीं खाते हैं। अब जब इस वर्ष लिये जाने वाले कुल 7000 करोड़ के कर्ज में अब बचे ही एक हजार से कम है तो अगले महीनों का प्रबंध कैसे होगा? निश्चित है कि आने वाले समय में वेतन और पैन्शन का सुचारु भुगतान कैसे हो पायेगा यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है। क्योंकि जनता पर और कर्ज भार बढ़ाना संभव नहीं होगा और राजनीतिक मित्रों को दी गयी ताजपोशियां और आर्थिक लाभों में कटौती नहीं हो पायेगी। इस परिदृश्य में अगला वित्तीय प्रबंधन सरकार के लिए कसौटी हो जायेगा।